Tawakkol Karman, the Yemeni journalist and Nobel Peace Prize laureate, revolutionized women's rights, press freedom

Tawakkol Karman, यमन की Taiz में जन्मी पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ, जिनका पूरा जीवन कहानी संघर्ष, शिक्षा, दृढ़ विश्वास और वैश्विक नेतृत्व का उदाहरण है। 7 फरवरी 1979 को जन्मी Tawakkol Karman ने बचपन से ही यमन में महिलाओं की स्थिति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक असमानता को महसूस किया। उन्होंने सना यूनिवर्सिटी से व्यवसाय प्रबंधन में स्नातक किया और University of Science and Technology (Yemen) से political science में डिप्लोमा प्राप्त किया। बाद में University of Massachusetts Lowell से भी शिक्षा ग्रहण की। उनकी शुरुआती शिक्षा और पारिवारिक मूल्य उन्हें पत्रकारिता में प्रेरित करते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने 2005 में “Women Journalists Without Chains” की स्थापना की, जिससे प्रेस स्वतंत्रता और महिला सशक्तिकरण के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ। उनकी आवाज़ ने यमन में बदलाव की हवा फैलाई। 2011 के Arab Spring आंदोलन में वह यमन की सबसे प्रमुख नेता बन कर उभरीं। सना में विरोध प्रदर्शन और शांतिपूर्ण चुनौती का नेतृत्व कर उन्होंने युवा वर्ग को प्रेरित किया। इसी कारण उन्हें 2011 में Nobel Peace Prize मिला — वह पहले अरब महिला, दूसरी मुस्लिम महिला और सबसे कम उम्र की नोबेल विजेता बनीं। उनकी नीतियाँ और भाषण भारतीय और विश्व स्तर पर ट्रेंडिंग हुए। उनके “Tawakkol Karman”
Early life and education - Tawakkul Karman's early struggle and the foundation of knowledge

तवक्कुल करमान का जन्म 7 फरवरी 1979 को यमन के एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर ताईज़ (Taiz) में हुआ था। ताईज़ यमन का तीसरा सबसे बड़ा शहर है और अपने प्राचीन विश्वविद्यालयों और साहित्यिक परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यहीं की गलियों और सामाजिक वातावरण ने तवक्कुल करमान के भीतर न्याय, स्वतंत्रता और सामाजिक बदलाव की ज्वाला प्रज्वलित की। उनका पूरा नाम है तवक्कुल अब्दुल-सलाम खालिद करमान (Tawakkol Abdel-Salam Khalid Karman)।
उनके पिता अब्दुल-सलाम करमान, एक मशहूर वकील और यमन की राजनीति में प्रभावशाली व्यक्ति रहे हैं। वह इस्लाह पार्टी (Yemen’s Islamist political party) से जुड़े थे और कई बार सरकार में मंत्री पद पर आसीन रहे। एक ऐसे परिवार में जन्म लेना जहां शिक्षा और राजनीतिक चेतना दोनों का महत्व था, तवक्कुल को आरंभ से ही संवेदनशील और सक्रिय सोच प्रदान करता रहा।
शिक्षा की शुरुआत और बौद्धिक विकास
तवक्कुल करमान की स्कूली शिक्षा ताईज़ में ही शुरू हुई। यमन की सामाजिक व्यवस्था में जहां लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता था, वहां तवक्कुल ने परिवार से शिक्षा का समर्थन पाकर इसे एक विशेषाधिकार के रूप में लिया और इसका भरपूर उपयोग किया। वे शुरू से ही मेधावी, आत्मनिर्भर और विचारशील छात्रा रहीं।
इसके बाद उन्होंने Sana’a University से व्यवसाय प्रबंधन (Business Management) में स्नातक (Bachelor’s Degree) प्राप्त किया। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था क्योंकि यही वह समय था जब उन्होंने यमन के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को गहराई से समझना शुरू किया। शिक्षा उनके लिए सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं थी, बल्कि समाज के वास्तविक हालातों को समझने और बदलने की प्रेरणा भी बन गई।
बाद में, उन्होंने University of Science and Technology (Yemen) से Political Science में एक डिप्लोमा भी किया, जिससे उनकी राजनीतिक समझ और सशक्त हुई। उन्होंने अपने शिक्षण काल के दौरान मीडिया की ताकत, सार्वजनिक संवाद, और नीति-निर्माण में महिलाओं की भूमिका को लेकर कई रिसर्च और प्रेजेंटेशन में भाग लिया।
वैश्विक शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
तवक्कुल करमान की शिक्षा का अगला स्तर था University of Massachusetts Lowell (USA), जहां से उन्होंने वैश्विक दृष्टिकोण विकसित किया। यहाँ की शिक्षा प्रणाली, बहुसांस्कृतिक वातावरण और महिला स्वतंत्रता की समझ ने उन्हें मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के महत्व को और गहराई से समझने में मदद की।
उनकी पढ़ाई और अनुभवों का संयोजन उनके भविष्य के संघर्षों का आधार बना — खासकर press freedom, women empowerment, और democracy in the Arab world जैसे मुद्दों पर। उन्होंने इन विषयों पर केवल अध्ययन नहीं किया, बल्कि इन्हें अपनी ज़िंदगी का मिशन बना लिया।
शिक्षा से जागरूकता की ओर
उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल एक समझदार नागरिक बनाया, बल्कि उन्हें एक क्रांतिकारी आवाज़ बनने में मदद की। उन्होंने महसूस किया कि यमन में महिलाओं की स्थिति केवल सामाजिक दबाव से ही नहीं, बल्कि शिक्षा की कमी और सरकारी नीतियों से भी जकड़ी हुई है। उन्होंने यह भी जाना कि जब तक एक औरत खुद नहीं पढ़ेगी और समाज के अन्याय को नहीं समझेगी, तब तक बदलाव संभव नहीं है।
इसी सोच के कारण उन्होंने 2005 में “Women Journalists Without Chains (WJWC)” की स्थापना की, जिसका बीज उन्हीं की शिक्षा और जागरूकता के गर्भ से निकला था। उनकी पढ़ाई ने उन्हें यह स्पष्ट किया कि संवाद, लेखन और मीडिया किसी भी सामाजिक बदलाव का सबसे सशक्त माध्यम हो सकते हैं।
Tawakkol Karman Women Journalists Without Chains (WJWC)

WJWC की स्थापना: महिला पत्रकारिता में नई लहर
2005 में, तवक्कुल करमान ने “Women Journalists Without Chains” नामक संगठन की स्थापना की। यह संगठन यमन में प्रेस की स्वतंत्रता, सूचना तक लोगों की पहुंच, और खासकर महिलाओं की आवाज़ को मीडिया में जगह दिलाने के लिए समर्पित था। उन्होंने इस संगठन के माध्यम से दो प्रमुख मुद्दों को चुनौती दी:
सरकारी सेंसरशिप और मीडिया पर नियंत्रण।
महिला पत्रकारों को हाशिये पर डालने की प्रवृत्ति।
WJWC का उद्देश्य था — स्वतंत्र पत्रकारों को एकजुट करना, महिला पत्रकारों को सशक्त बनाना, और सरकार द्वारा बंद किए गए समाचार पोर्टलों और लेखकों को समर्थन देना।
तवक्कुल ने अपने पहले भाषण में ही घोषणा की थी:
“जब तक सच दबाया जाता रहेगा, हम पत्रकारिता को बंदिशों से आज़ाद करने के लिए संघर्ष करते रहेंगे। एक स्वतंत्र मीडिया ही लोकतंत्र की पहली शर्त है।”
मीडिया पर हमले और विरोध की राह
WJWC की स्थापना के बाद तवक्कुल करमान को कई बार गिरफ्तारी, धमकियाँ और सोशल बहिष्कार का सामना करना पड़ा। यमन में महिलाएं खुलकर सरकार की आलोचना नहीं करती थीं, लेकिन तवक्कुल ने इस परंपरा को तोड़ दिया। उन्होंने राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह की नीतियों की आलोचना खुले मंचों पर की, भ्रष्टाचार उजागर किया, और सत्ताधारियों को जवाबदेह बनाने की मांग की।
उन्होंने blogging, press releases, citizen journalism और social media platforms का भी कुशल उपयोग किया। WJWC ने पत्रकारों को ट्रेनिंग देना शुरू किया और सेंसरशिप के खिलाफ एक नेटवर्क तैयार किया।
इस बीच, सरकार ने उनके कई आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया और मीडिया चैनलों पर उनका नाम तक लेना मना कर दिया गया। लेकिन तवक्कुल डरी नहीं, बल्कि और मुखर हो गईं।
संवाद और स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष
WJWC के तहत तवक्कुल ने 400 से अधिक पत्रकारों को प्रशिक्षित किया, 100 से अधिक प्रेस रिलीज़ निकाले, और 20 से अधिक स्वतंत्र ब्लॉगर्स नेटवर्क बनाए। इन सभी प्रयासों ने यमन में एक वैकल्पिक मीडिया स्पेस का निर्माण किया, जहां सच को दबाया नहीं जा सकता था।
2007 से 2010 के बीच, उन्होंने सना की सड़कों पर नियमित रूप से प्रदर्शन शुरू किया, जहां वे हर हफ्ते संवाद की आज़ादी और महिला अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती थीं। इन प्रदर्शनों में उनके साथ छात्र, लेखक, और आम नागरिक भी जुड़ने लगे।
महिला पत्रकारों के लिए प्रेरणा
तवक्कुल करमान ने महिला पत्रकारों के लिए एक नया मॉडल पेश किया। वह न केवल विचारों की स्पष्टता के लिए जानी जाती हैं, बल्कि अपने हिजाब और आत्मविश्वास के संतुलन से भी उन्होंने यह साबित किया कि एक मुस्लिम महिला भी बिना किसी समझौते के पत्रकारिता और क्रांति का नेतृत्व कर सकती है।
उनकी पत्रकारिता ने यमन की महिलाओं को सिर्फ घरेलू जिम्मेदारियों से बाहर निकलकर सामाजिक नेतृत्व में आने का आत्मबल दिया।
Arab Spring leadership and Nobel Prize – Tawakkul Karman recognized on the world stage

तवक्कुल करमान की पत्रकारिता और सामाजिक सक्रियता का अगला चरण था वह आंदोलन, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक क्रांतिकारी नेता के रूप में स्थापित कर दिया — अरब स्प्रिंग (Arab Spring)। यमन में भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, प्रेस की आज़ादी की कमी और मानवाधिकारों के हनन ने वर्षों से लोगों में असंतोष भर रखा था। तवक्कुल करमान वह नाम बनीं जिसने इस असंतोष को आवाज़ दी और उसे एक सशक्त जनांदोलन में बदल दिया। यही आंदोलन उन्हें 2011 में नोबेल शांति पुरस्कार तक ले गया।
अरब स्प्रिंग की शुरुआत और यमन में चिंगारी
2010 में ट्यूनिशिया में एक युवा व्यापारी की आत्मदाह से जो विरोध की लहर उठी, उसने पूरे अरब जगत को हिला दिया। मिस्र, लीबिया, बहरीन और यमन सहित कई देशों में लोग तानाशाही शासन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। यमन में इस लहर की अगुआ बनीं तवक्कुल करमान। उन्होंने सना में लगातार प्रदर्शन आयोजित किए, जिनमें वे लोकतंत्र, महिला अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता और राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह के इस्तीफे की मांग करती थीं।
20 जनवरी 2011 को उनकी गिरफ्तारी ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा। लेकिन यह गिरफ्तारी तवक्कुल को और मज़बूत बना गई। उन्हें कुछ ही दिनों में रिहा करना पड़ा क्योंकि जनता का आक्रोश चरम पर था। इसके बाद तवक्कुल पूरे देश की उम्मीद बन गईं।
नेतृत्व की अनोखी शैली
तवक्कुल करमान का नेतृत्व किसी पारंपरिक नेता जैसा नहीं था। वे आम जनता के बीच बैठती थीं, अपनी बातें बुलंद लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से रखती थीं। उन्होंने गांधीवादी अहिंसा के रास्ते पर चलकर यह दिखाया कि बदलाव बंदूक या हिंसा से नहीं, बल्कि विचार और साहस से लाया जा सकता है।
वह हिजाब पहनकर मंचों पर जातीं और महिलाओं को इस्लामी मूल्यों के भीतर रहते हुए भी सामाजिक बदलाव का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करतीं। उनके भाषणों में राजनीतिक चेतना, सामाजिक समझ और मानवीय संवेदनशीलता का अनूठा मेल होता था।
उन्होंने यमन के युवाओं को राजनीतिक रूप से जागरूक किया और महिलाओं को सड़क पर उतरकर विरोध करने की ताकत दी। उन्होंने बार-बार कहा,
“हमारी क्रांति सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं है, यह एक विचारधारा, एक चेतना की क्रांति है।”
नोबेल शांति पुरस्कार: एक ऐतिहासिक उपलब्धि
तवक्कुल करमान के इस नेतृत्व और साहसिक संघर्ष को दुनिया ने सलाम किया। 7 अक्टूबर 2011 को उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। यह सम्मान उन्हें लाइबेरिया की एलेन जॉनसन सरलीफ और लैमाह गबोवी के साथ संयुक्त रूप से मिला।
इस पुरस्कार के साथ उन्होंने कई रिकॉर्ड बनाए:
पहली अरब महिला जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
दूसरी मुस्लिम महिला जिन्हें यह सम्मान मिला।
और उस समय की सबसे कम उम्र की शांति पुरस्कार विजेता (32 वर्ष)।
पुरस्कार लेते समय उन्होंने कहा,
“यह पुरस्कार यमन की महिलाओं, युवाओं और संघर्षशील जनता का है। यह अहिंसा, साहस और संकल्प की जीत है।”
वैश्विक मंचों पर उनकी भूमिका
नोबेल पुरस्कार के बाद तवक्कुल करमान ने दुनिया के बड़े मंचों पर यमन की जनता और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी शुरू की। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, यूरोपियन यूनियन, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, और TED Talks जैसे मंचों पर भाषण दिए।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यमन में लोकतंत्र बहाल करने, युद्ध को समाप्त करने और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की।
उनका चेहरा अब सिर्फ यमन तक सीमित नहीं था, वह “Arab Spring Icon”, “Iron Woman of Yemen”, और “Mother of the Revolution” जैसे उपाधियों से नवाजी गईं।
Hijab Statement and Global Debate - The Dignified Response of Tawakkul Karman and its International Resonance
तवक्कुल करमान को जहां एक ओर एक राजनीतिक नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता और क्रांति की प्रतीक के रूप में पहचाना जाता है, वहीं उनके हिजाब को लेकर दिया गया एक बयान वैश्विक स्तर पर बड़ी बहस का कारण बना। यह बयान न केवल इस्लामी परिधान की सामाजिक और सांस्कृतिक व्याख्या करता है, बल्कि महिला गरिमा, आधुनिकता की परिभाषा, और व्यक्तिगत पहचान को लेकर प्रचलित धारणाओं को चुनौती भी देता है।
वह क्षण जब हिजाब पर उठा सवाल
एक इंटरव्यू के दौरान एक पत्रकार ने उनसे व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा कि –
“क्या आपका हिजाब आपकी शिक्षा और बौद्धिक स्तर के अनुकूल है?”
यह प्रश्न यथार्थ में उन तमाम महिलाओं पर एक अप्रत्यक्ष हमला था जो आधुनिक शिक्षा और धार्मिक मूल्यों दोनों को साथ लेकर चलती हैं।
लेकिन तवक्कुल करमान ने बिना झिझक जो उत्तर दिया, वह इतिहास में दर्ज हो गया। उन्होंने कहा:
“आदिकाल में मनुष्य लगभग नग्न था, और जैसे-जैसे उसकी बुद्धि विकसित हुई, उसने कपड़े पहनना शुरू किया। आज मैं जो कुछ भी हूँ और जो कपड़े मैंने पहने हैं, वे उस उच्चतम स्तर की सोच और सभ्यता का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे मानव ने सदियों की साधना से प्राप्त किया है। यह पीछे जाना नहीं है; बल्कि कपड़ों को उतारना ही उस प्राचीन असभ्यता की ओर लौटना है। सभ्यता सिर्फ आधुनिक फैशन नहीं है, बल्कि आत्म-संयम, मर्यादा और विश्वास का सम्मान है।”
इस बयान का वैश्विक प्रभाव
यह कथन एक ही समय में गहरा, तीखा और सभ्य था। इसने नारी स्वतंत्रता की उस परिभाषा को चुनौती दी जो केवल वस्त्रों की “कमियों” से तय होती है। उन्होंने यह साबित किया कि एक महिला बिना अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्य त्यागे भी शिक्षित, मुखर और प्रभावशाली हो सकती है।
तवक्कुल करमान के इस उत्तर की सराहना विश्वभर में की गई — विशेष रूप से Muslim women rights activists, Western feminists, और academic circles द्वारा।
कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समाचार संस्थानों, जैसे BBC, Al Jazeera, The Guardian, New York Times आदि ने इस पर लेख प्रकाशित किए।
हिजाब की बहस और तवक्कुल की भूमिका
आज के समय में जब कई देशों में हिजाब को प्रतिबंधित करने की नीति अपनाई जा रही है, वहां तवक्कुल करमान जैसी वैश्विक हस्ती का यह बयान एक नयी बहस को जन्म देता है:
क्या स्वतंत्रता केवल वही है जो पश्चिम परिभाषित करता है?
क्या एक महिला की गरिमा उसके वस्त्र की लम्बाई-चौड़ाई से तय होती है?
क्या धार्मिक विश्वास और आधुनिकता परस्पर विरोधी हैं?
इन सवालों के उत्तर तवक्कुल करमान के जीवन और बयान दोनों में छिपे हैं। उन्होंने एक मुस्लिम महिला के तौर पर दिखाया कि आप अपने हिजाब के साथ भी न केवल नोबेल पुरस्कार जीत सकती हैं, बल्कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली आवाजों में से एक बन सकती हैं।
हिजाब, आत्म-निर्णय और पहचान
तवक्कुल करमान के हिजाब बयान ने यह भी स्थापित किया कि हिजाब पहनना दमन नहीं, बल्कि यह भी एक प्रकार का आत्म-निर्णय (Self-Determination) है। उन्होंने पश्चिमी विचारधाराओं को चुनौती दी जो हर पारंपरिक चीज को पिछड़ापन मानते हैं।
उन्होंने यह भी साझा किया कि वह पहले निक़ाब (पूर्ण चेहरा ढकने वाला घूंघट) पहनती थीं, लेकिन बाद में उन्होंने खुद निर्णय लेकर रंग-बिरंगा हिजाब पहनना शुरू किया, जो उनके आत्मविश्वास और पहचान का प्रतीक बन गया।
उनकी बातों का सार यही है —
“हमारी पहचान हम खुद तय करेंगे। हम आधुनिकता को अपनाएंगे, लेकिन अपने मूल्यों को त्यागे बिना।

Tawakkol Karman Foundation: विचार से क्रिया की ओर
2014 में, उन्होंने “Tawakkol Karman Foundation” की स्थापना की, जो कि एक स्वतंत्र, गैर-राजनीतिक और गैर-लाभकारी संगठन है। इस संस्था का उद्देश्य है:
शिक्षा के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाना
युद्ध और हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास कार्य करना
युवाओं को नेतृत्व के लिए तैयार करना
महिलाओं को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना
इस फाउंडेशन की पहलें यमन तक सीमित नहीं हैं। यह संस्था अब अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और एशिया के अन्य देशों में भी अपने प्रोजेक्ट्स चला रही है। इसमें स्कूल निर्माण, छात्रवृत्ति कार्यक्रम, महिला प्रशिक्षण केंद्र, और शांति-संवाद कार्यशालाएँ शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक मंचों पर सक्रिय भागीदारी
तवक्कुल करमान को 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के “Advisory Committee on Genocide Prevention” में शामिल किया गया। यह समिति दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में नरसंहार की रोकथाम और मानवाधिकार उल्लंघन पर सलाह देती है।
इसके अलावा, वे विभिन्न वैश्विक संगठनों जैसे:
World Economic Forum (WEF)
Nobel Women’s Initiative
International Crisis Group
Al Jazeera Center for Studies
में विशिष्ट योगदान दे रही हैं। उनके विचार क्लाइमेट जस्टिस, मीडिया की स्वतंत्रता, और डिजिटल सेंसरशिप जैसे नए विषयों पर भी गूंज रहे हैं।
मीडिया, TED Talks और लेखनी
तवक्कुल करमान आज की पीढ़ी को जागरूक करने के लिए TED Talks, Oxford Union, Harvard Conferences, और UN Summits जैसे मंचों पर नियमित रूप से भाषण देती हैं। उन्होंने “Iron Jasmine: How an Arab Woman Led Her Country’s Fight for Democracy” नामक एक किताब भी लिखी है, जो उनके संघर्ष, दर्शन और अनुभवों का एक सशक्त दस्तावेज़ है।
उनका डिजिटल प्रभाव भी अत्यंत सशक्त है। ट्विटर और इंस्टाग्राम पर उनके लाखों फॉलोअर्स हैं। वे नियमित रूप से राजनीतिक संकट, महिला अधिकार, और इस्लामी समाज में लोकतांत्रिक सुधार पर विचार साझा करती हैं।
2025 तक की प्रमुख उपलब्धियाँ
2020 के बाद से अब तक (2025 तक), तवक्कुल करमान ने निम्नलिखित प्रमुख कार्य किए हैं:
अफगानिस्तान और सूडान में महिला शांति दलों को प्रशिक्षित किया
COVID-19 के दौरान यमन में चिकित्सा सहायता वितरित की
“Youth Peace Ambassadors” नामक कार्यक्रम शुरू किया, जो 14 देशों में लागू हुआ
2023 में उन्हें “Global Human Dignity Award” से सम्मानित किया गया
2024 में TIME Magazine ने उन्हें “100 Most Influential Women of the Decade” में शामिल किया
भविष्य दृष्टिकोण और प्रेरणा
तवक्कुल करमान बार-बार यह कहती हैं:
“हमारी लड़ाई सिर्फ तानाशाही के खिलाफ नहीं है, यह नफ़रत, असमानता और चुप्पी के खिलाफ है।”
उनकी यह सोच ही उन्हें आज भी सक्रिय बनाए हुए है। वे आधुनिकता और परंपरा के बीच सेतु बनकर, पूर्व और पश्चिम दोनों दुनिया को जोड़ने का कार्य कर रही हैं।
उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि यदि सोच स्पष्ट हो और उद्देश्य निःस्वार्थ हो, तो एक सामान्य सी महिला भी वैश्विक परिवर्तन की दूत बन सकती है।

क्रमांक | विवरण | जानकारी |
---|---|---|
1️⃣ | पूरा नाम | तवक्कुल अब्द अल-सलाम खालिद करमान |
2️⃣ | जन्म तिथि | 7 फरवरी 1979 |
3️⃣ | जन्म स्थान | ताइज़ (Taʿizz), यमन |
4️⃣ | उम्र (2025 के अनुसार) | 46 वर्ष |
5️⃣ | राष्ट्रीयता | यमनी |
6️⃣ | धर्म | इस्लाम |
7️⃣ | शिक्षा संस्थान | – सना विश्वविद्यालय (Sana’a University) – यमन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी – यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स लोवेल, USA |
8️⃣ | डिग्रियाँ | ग्रेजुएशन इन कम्युनिकेशन, पोस्ट-ग्रेजुएशन इन पॉलिटिकल साइंस |
9️⃣ | पति का नाम | मोहम्मद अल-नाहमी (Mohammed al-Nahmi) |
🔟 | विवाह स्थिति | विवाहित |
1️⃣1️⃣ | बच्चों की संख्या | तीन (3) बच्चे |
1️⃣2️⃣ | पिता का नाम | अब्द अल-सलाम करमान |
1️⃣3️⃣ | माता का नाम | अनीसा हुसैन अब्दुल्ला अल-असवदी |
1️⃣4️⃣ | भाई-बहनों के नाम | ईश्राक करमान, हूदा करमान, हकीमा करमान, इंतिसार करमान, खादिजा करमान, सफा करमान |
1️⃣5️⃣ | मुख्य उपलब्धि | 2011 में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त |
1️⃣6️⃣ | सक्रिय क्षेत्र | मानवाधिकार, महिला सशक्तिकरण, पत्रकारिता, राजनीतिक सुधार |
1️⃣7️⃣ | संस्था | Women Journalists Without Chains (WJWC), Tawakkol Karman Foundation |
1️⃣8️⃣ | उपनाम | यमन की लौह महिला (Iron Woman of Yemen), क्रांति की माँ (Mother of the Revolution) |
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New generation Muslim women – a symbol of education, hijab and self-reliance
आज की आधुनिक मुस्लिम महिलाएं न केवल अपनी शिक्षा में आगे हैं, बल्कि वे समाज में नई दिशा देने वाली प्रेरक व्यक्तित्व बन चुकी हैं। उदाहरण के तौर पर, रामशा सुलतान ख़ान, जिन्होंने एक MBA ग्रैजुएट के तौर पर हिजाब में रहते हुए एक सफल एंटरप्रेन्योर के रूप में अपनी पहचान बनाई। वे नारी सशक्तिकरण का जीता-जागता उदाहरण हैं। उनकी विस्तृत कहानी यहां पढ़ें 👉
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इसी तरह, मुनीज़े मोइन एक उभरती हुई हस्ती हैं, जिन्होंने कम उम्र में ही अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी जीवनशैली, उपलब्धियाँ और पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर लोग उत्सुक हैं। उनके बारे में विस्तार से जानें इस बायोग्राफिकल लेख में 👉
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